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तौबा व इस्तेग़फार की तरफ ध्यानाकर्षित करने की ज़रूरत:- मुफ्ती असदुद्दीन क़ासमी



कानपुर:- रमज़ान मुबारक का आखिरी अशरा शुरू हो चुका है, तमाम अहले ईमान को अपने दूसरे कामों में कमी करके ज़्यादा से ज़्यादा वक़्त अल्लाह का ज़िक्र, कुरआन की तिलावत, ईबादत , तौबा व इस्तेग़फार और रो-रोकर अल्लाह से दुआ मांगने में गुज़ारने की ज़रूरत है।

 यह नेकी कमाने वाले मौसमे बहार के आखिर बचे हुए दिन हैं, यं तो रमज़ान मुबारक का पूरा महीना नेकियों का मौसमे बहार है लेकिन इसके आखिरी अशरे की फज़ीलत पहले 2 अशरों से कहीं ज़्यादा है, इसमें अल्लाह तआला की रहमतें और बरकतें और उसकी इनायतें पहले से ज़्यादा बन्दों की तरफ आकर्षित होती हैं।

 मस्जिद मुहम्मदी दरगाह शरीफ के इमाम व खतीब मुफ्ती असदुद्दीन क़ासमी ने इन विचारों को व्यक्त करते हुए बताया कि अल्लाह के रसूल सल्लाहु अलैहि वसल्लम रमज़ान के इस आखिरी अशरे में इबादत का खास एहतमाम फरमाते थे, रिवायत में आता है कि जब रमज़ान का आखिरी अशरा आता था तो अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इबादत के लिये कमर कस लेते थे, खुद भी रातों को जाग कर अल्लाह की इबादत में व्यस्त रहते और अपने परिजनों को भी जगाने का काम करते थे।

 अहले ईमान को इन मुबारक लम्हों की क़द्र करते हुए अल्लाह की तरफ ध्यानाकर्षित करने और अपने गुनाहों और बद आमालियों से तौबा करके अपने खा़लिक़ व मालिक को मनाकर राज़ी करने की ज़रूरत है।

 इस वक़्त हम जिन हालात से दो चार हैं और जिस महामारी ने हम सबको हिलाकर रख दिया है इसमें कोई शक नहीं कि यह सब हमारे खराब कर्मांे का परिणाम और गुनाहों की सज़ा है लिहाज़ा तमाम अहले ईमान को बहुत ज़्यादा तौबा और इस्तेग़फार की तरफ ध्यान लगाने की ज़रूरत है, दुनिया के मामूली से फायदे के लिये हम ना जाने कितनी रातें जाग कर गुज़ार देते हैं तो क्या अल्लाह को राज़ी करने के लिये हम एक अशरा यानि 10 दिन भी नहीं निकाल सकते हैं।


कानपुर डेस्क

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