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महाभारत (कृष्ण-दुर्योधन संवाद)-प्रणव मणि त्रिपाठी



है युद्ध प्रबल श्रेणी में जो
  बस एक युद्ध माना जाता
वो नाम "महाभारत" का है,
जो रण-विशेष जाना जाता।।

सन्देशा राधेमोहन का
दुर्योधन ने ठुकराया था।
पांडव हेतु बस पाँच गांव
भी देने से कतराया था।।

इन सब पापों से आगे भी
दुर्योधन ने व्यवहार किया
बांधो इस छलिया कृष्णा को
जब ऐसा वो हुंकार किया।।

श्री कृष्णा उठकर के बोले
आजा कुरुपुत्र तू साध मुझे।
आकाश बाँध गर सकता हो
तो आ दुर्योधन बाँध मुझे।।

जब अहंकार मानवता पर
बादल बनकर छा जाता है।
कुछ भी विचारने से पहले
उसका विवेक मर जाता है।।

जंजीर हाथ में लेकर वो
जैसे दवंदव का अकड़ किया।
फिर रुद्र रूप श्री विष्णु ने
अदभुत स्वरूप ही दिखा दिया।।

कौरव सिहांसन डोल उठा
सम्पूर्ण प्रजा में त्राह मची
विष्णु प्रकाश के आगे अब
सब डोल रहा है हाय! मची।।

नारायण लेकर काल रूप
बोले सुन ले अब दुर्योधन
मैत्री की बात न मानी तो
तैयार रहो अब होगा रण।।

लीलाधर की लीला थी सब
वो पाप मिटाने आये थे।
भारत में "महा भारत" का
वो दृश्य दिखाने आये थे।।
                             
                       ✍️ प्रणव मणि त्रिपाठी
                 महावीर धाम सोसाइटी रसड़ा






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