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आठ जुलाई को सिकन्दरपुर मे पूर्व प्रधानमंत्री की पुण्यतिथि मनाई जाएगी




बागी बलिया के लाल चन्द्रशेखर को कोटि कोटि नमन- भुनेश्वर चौधरी

(✍️मोहम्मद सरफराज)

उत्तर प्रदेश जनपद बलिया से है जहा  पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर सिंह ने राजनीति में कभी सिद्धांतों से समझौता नहीं किया। उन्होंने सत्ता के लिए राजनीति नहीं की बल्कि वैचारिक तथा सामाजिक परिवर्तन की राजनीति को समर्थन दिया। उन्होंने जीवन पर्यंत दलितों और गरीबों के हित में संघर्ष किया। *पूर्व चेयरमैन भुनेश्वर चौधरी ने बताया कि समाजवादी पार्टी तत्वधान में आयोजित इस कार्यक्रम में पार्टी के समस्त वरिष्ठ नेता एवं पार्टी कार्यकर्ता उपस्थित रहेंगे*-आठ जुलाई को सिकन्दरपुर मे पूर्व प्रधानमंत्री की पुण्यतिथि मनाई जाएगी।

चंद्रशेखर का जन्म बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में एक मध्यमवर्गीय किसान परिवार में 17 अप्रैल 1927 को हुआ था। वे 1977 से 1988 तक जनता पार्टी के अध्यक्ष रहे। वे छात्र जीवन से ही राजनीति की ओर आकर्षित थे। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से 1950-51 में राजनीति शास्त्र में मास्टर डिग्री हासिल करने के बाद समाजवादी आंदोलन में छलांग लगा दी। उन्हें आचार्य नरेंद्र देव का सानिध्य मिला। बलिया में प्रजा समाजवादी पार्टी के सचिव चुने गए। एक वर्ष के अंदर वे उत्तर प्रदेश में राज्य प्रजा समाजवादी पार्टी के संयुक्त सचिव बने। 1955-56 में वे उत्तर प्रदेश के राज्य प्रजा समाजवादी पार्टी के महासचिव बने। सन 1962 में उत्तर प्रदेश से लोकसभा के लिए चुने गए। वे जनवरी 1965 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए। सन 1967 में उन्हें कांग्रेस संसदीय दल का महासचिव चुना गया। संसद के सदस्य के रूप में उन्होंने दलितों के हित के लिए कार्य करना शुरू किया। इस संदर्भ में जब उन्होंने समाज में कुछ वर्ग की गलत तरीके से बढ़ रहे एकाधिकार के खिलाफ आवाज उठाई तो सत्ता पर आसीन लोगों के साथ उनके मतभेद हो गया।



वे ऐसे युवा तुर्क नेता के रूप में सामने आए, जिसमे दृढ़ता साहस एवं ईमानदारी निहित स्वार्थ के खिलाफ लड़ाई लड़ने की ताकत दिखने लगी। वे 1969 में दिल्ली से प्रकाशित साप्ताहिक पत्रिका यंग इंडियन के संस्थापक संपादक थे। आपातकाल मार्च 1977 से जून 1975 के दौरान यंग इंडियन को बंद करा दिया गया था। फरवरी 1989 से पुन: प्रकाशन शुरू हुआ। चंद्रशेखर हमेशा परिवारवाद व व्यक्तिगत राजनीति के खिलाफ रहे एवं वैचारिक तथा सामाजिक परिवर्तन की राजनीति का समर्थन किया करते थे। इसके चलते वे जयप्रकाश नारायण के करीब आ गए। 25 जून 1975 को आपात काल के दौरान उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। जबकि उस समय भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी में पदों पर विराजमान थे। वे हमेशा सत्ता की राजनीति का विरोध करते थे और लोकतांत्रिक मूल्यों तथा सामाजिक परिवर्तन के प्रति प्रतिबद्धता की राजनीति को महत्व देते थे। आपातकाल के दौरान जेल में बिताए गए समय में उन्होंने हिंदी में एक डायरी लिखी थी जो बाद में जेल डायरी के नाम से प्रकाशित हुई समाजिक परिवर्तन गतिशीलता उनके लेखन का एक प्रसिद्ध संकलन है। चंद्रशेखर 6 जनवरी से 30 जून 1983 तक दक्षिण के कन्याकुमारी से नई दिल्ली तक लगभग 4260 किलोमीटर की पदयात्रा की थी। उनके पदयात्रा का लक्ष्य लोगों से मिलना व उनकी समस्याओं को समझना था।

उन्होंने सामाजिक व राजनीति कार्यकर्ताओ को प्रशिक्षित करने के लिए देश के विभिन्न भागों में 15 भारत यात्रा केंद्र स्थापित किए थे। वे आज की राजनीति से परे थे। कभी भी क्षेत्रवाद व परिवारवाद की राजनीति से कोसों दूर रहे। चंद्रशेखर बोन कैंसर से पीड़ित हो गए और 8 जुलाई 2007 को उनका निधन हो गया जिसकी कमी आज भी लोंगो के दिलों दिमाग में रहती है।

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