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रूह अफज़ा के बारे में महत्व पुर्ण जानकारी-लेखिका तसनीम फ़िरदौस




नई दिल्ली।

सुल्तान अख्तर

रूह अफजा एक गैर-अल्कोहल केंद्रित स्क्वैश है। यह 1906 में गाजियाबाद, ब्रिटिश भारत [1] में हकीम हाफिज अब्दुल मजीद [2] द्वारा तैयार किया गया था और उनके द्वारा और उसके बेटों द्वारा तैयार किया गया। हमदर्द (वक्फ) प्रयोगशालाओं, पाकिस्तान और हमदर्द (वक्फ) प्रयोगशालाओं, भारत द्वारा स्थापित कंपनियों द्वारा निर्मित किया गया था। 1948 से, कंपनी भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में  उत्पादन कर रही है। अन्य कंपनियां इन देशों में भी एक समान पेटेंटयुक्त नुस्खा तैयार करती हैं।रूह अफजा की विशिष्ट यूनानी नुस्खा कई तरह के तत्वों को जोड़ती है जिन्हें ठंडा एजेंट माना जाता है, जैसे कि गुलाब, जो लू (उत्तरी भारत और पाकिस्तान और बांग्लादेश की गर्म गर्मी की हवा) के लिए एक उपाय के रूप में उपयोग किया जाता है। आमतौर पर रमजान के महीने से यह पेय से जुड़ा होता है। जिसमें आमतौर पर इफ्तार के दौरान शर्बत बनाते हैं। इसे स्वाद शर्बत, शीतल पेय, ices और ठंडे डेसर्ट जैसे लोकप्रिय फ़लुड़ा के रूप में वाणिज्यिक रूप से बनाया  जाता है।

रूह अफज़ा 1907 में दिल्ली के लाल कुँए में स्थित हमदर्द दवाखाने से ईजाद हुआ.

इसके ईजाद होने की कहानी कुछ इस प्रकार है।

पीलीभीत के निवासी हाफिज़ अब्दुल मजीद साहब दिल्ली में आकर बस गए. यहां हकीम अजमल खां के मशहूर ""हिंदुस्तानी दवाखाने"" में मुलाज़िम हो गए. बाद में मुलाज़मत छोड़ कर अपना "हमदर्द दवाखाना" खोल लिया. हकीम साहब को जड़ी बूटियों से खास लगाव था. इसलिए जल्द ही उनकी पहचान माहिर हकीम मे हो गया. हमदर्द दवाखाने में बनने वाली सब से पहली दवा 'हब्बे मुक़व्वी ए मैदा" थी।


उस ज़माने में अलग अलग  फूलों, फलों  और बूटियों के शर्बत दसतियाब थे. जैसे गुलाब का शर्बत, अनार का शर्बत वगैरह वगैरह. 


हमदर्द दवाखाने के दवा बनाने वाले डिपार्टमेंट में सहारनपुर के रहने वाले हकीम उस्ताद हसन खां थे। जो एक माहिर दवा बनाने वाले के साथ साथ अच्छे हकीम भी थे. हकीम अब्दुल मजीद साहब ने उस्ताद हसन खां से ये ख्वाहिश ज़ाहिर किया। कि  फलों, फूलों और जड़ी बूटियों को मिला एक ऐसा शर्बत बनाया जाए जिसका ज़ायक़ा बे मिसाल हो और इतना हल्का हो कि हर उम्र का इंसान पी सके. उस्ताद हसन खां ने बड़ी मेहनत के बाद एक शर्बत का नुस्खा बनाया. जिसमें जड़ी बूटियों में से "खुर्फा" मुनक्का, कासनी, नीलोफर, गावज़बां और हरा धनिया, फलों में से संतरा, अनानास, तरबूज़ और सब्ज़ियों में गाजर, पालक, पुदीना, और हरा कदु, फलों में गुलाब, केवड़ा, नींबू, नारंगी जबकि ठंडक और खुश्बू के लिए सलाद पत्ता और संदल को लिया गया.


कहते हैं जब ये शर्बत बन रहा था तो इसकी खुशबू आस पास फैल गई और लोग देखने आने लगे कि क्या बन रहा है! जब ये शर्बत बनकर तैय्यार हुआ तो इसका नाम रूह अफज़ा रखा गया. रूह अफज़ा नाम उर्दू की मशहूर मसनवी गुलज़ार ए नसीम से लिया गया है जो एक किरदार का नाम है। इसकी पहली खेप हाथों हाथ बिक गई।


रूह अफज़ा को मक़बूल होने में कई साल लगे. इसका ज़बर्दस्त ऐडवेर्टीसेमेंटस कराया गया.

और आज रूह अफज़ा दुनिया में पिया जाने वाला सब से पसंदीदा शर्बत है।

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