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बाबा साहेब को शोषित पिछड़ो के नेता के रूप सीमित करना उनके साथ अन्याय होगा उनकी विचार धारा वास्तविक राष्ट्रवाद है- हर्ष देव





रिपोर्ट/नेहाल अख्तर

चिलकहर,बलिया।

कुछ लोग अपने जीवन में प्रसिद्धि प्राप्त कर लेते हैं, तो कुछ  मरणोपरांत, कुछ लोगों की उनके जीवन और मरणोपरांत भी प्रसिद्धि बनी रहती है। बाबा साहब भीमराव अंबेडकर जी अपने जीवन काल में बहुत ज्यादा प्रसिद्ध नहीं हुए थे, परन्तु धीरे-धीरे उनका कद इतना अधिक विशालकाय हो गया है कि कुछ समय पहले सोचना मुश्किल था यह कहना था ग्राम विकास अधिकारी ग्राम पंचायत अधिकारी समन्वय समिति बलिया के जिलाध्यक्ष हर्षदेव का जो  चिलकहर ब्लाक के ग्राम पंचायत गुरगुजपुर में  अपने आवास पर बाबा साहेब के जयंती पर आयोजित जयन्ती समारोह में व्यक्त किया था।



श्री हर्षदेव ने कहा कि संचार क्रांति के बाद अंबेडकर की लोकप्रियता इस प्रकार बढ़ जाएगी, यह कल्पना से परे थी। एक पत्रिका और एक टीवी समाचार चैनल ने सर्वेक्षण के जरिये यह जानना चाहा कि महात्मा गांधी के बाद भारत के लोग किसे सबसे महान मानते है। चयन की प्रक्रिया  मतदान, सर्वे और बुद्धिजीवी समूह की राय तीन चरणों की प्रक्रिया, यानी 28 प्रबुद्ध भारतीयों की जूरी, ऑनलाइन मतदान व मिस्ड कॉल, मार्केटिंग रिसर्च के सर्वेक्षण की महानतम भारतीयों की रैंकिंग में अंबेडकर प्रथम स्थान पर रहे। उनकी लोकप्रियता  नेहरू, सरदार पटेल् से भी ज्याद थी।


श्री हर्ष देव ने कहा कि दिलचस्प बात यह है कि जिस दिन परिणाम घोषित हुआ,चैनल पर चर्चा के लिए कुछ विशेष अतिथियों को बुलाया गया, जो अंबेडकर की इस लोकप्रियता का सही मूल्यांकन ही नहीं कर सकते,क्योंकि वह लोग दलित आंदोलन से किसी भी तरह से जुड़े नहीं थे। यह उम्मीद भी नहीं है कि उन्होंने दलित आंदोलन के बारे में बहुत ज्यादा पढ़ा भी होगा। सभी ने कहा कि बाबा साहेब ने भारतीय संविधान लिखा और यह उनका सबसे बड़ा योगदान है, जबकि यह सच नहीं है। बाबा साहेब का सबसे बड़ा योगदान दलित,पिछडा एवं वंचित समाज को गुलामी से आजाद कराने का आश्वासन देना, सामाजिक समरसता एवं स्वतंत्रता को स्थापित करके समतामूलक समाज के लिए संघर्ष करना था। परन्तु सम्पूर्ण चर्चा में इसका ज्यादा जिक्र तक ही नहीं हुआ।


श्री हर्षदेव ने कहा कि बाबा साहेब को सिर्फ दलितों के लिए संघर्ष करने या भारतीय संविधान के निर्माण तक सीमित करने से उनका सही मूल्यांकन नहीं हो पायेगा। 1951 में कानून मंत्री के पद से बाबा साहेब ने त्याग पत्र दलित के सवाल पर नहीं, महिलाओं को संपत्ति में बराबरी के अधिकार के मुद्दे पर दिया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से विचार विमर्श करके उन्होंने हिंदू कोड बिल पेश किया, जिसमें संपत्ति में महिला और पुरुष, दोनों के बराबर अधिकार का प्रावधान किया गया था। कई सांसदों ने जब इसका विरोध किया और वह बिल पास नहीं हो सका, तो अंबेडकर बहुत आहत हुए और कानून मंत्री के पद से त्याग पत्र दे दिया।


 अब यहां एक प्रश्न उठता है कि क्या स्त्रीवाद की वकालत करने वाली महिलाओं ने अंबेडकर के साथ न्याय किया? जो लोग स्त्री-पुरुष समानता की बातें करते नहीं थकते, क्या वे कभी इसकी चर्चा करते हैं? दलित महिलाओं को तो कुछ पता भी है, सवर्ण महिलाओं को इसका ज्ञान तो नहीं के बराबर।तमाम गैर-दलित शिक्षित महिलाओं से जब  चर्चा किया जाता है तो वे बिल्कुल अनभिज्ञ निकलती है। ऐसे कई मामले हैं, जहां अंबेडकर जी के साथ न्याय होता नहीं दिखता, परन्तु अब शायद यह सच बहुत दिनों तक छिपने वाला भी नहीं है।


उन्होंने के कहा कि राम लीला मैदान में अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार के खिलाफ जब आंदोलन चलाया था, तो उन दिनों उस मैदान में ही नहीं, हर जगह ‘भारत माता की जय’ का नारा गूंजता सुनाई देता था। कई दूसरे संगठन भी यही नारा लगाते हैं। लेकिन बहुत सारे संगठन ऐसे मामलों में यह सवाल भी पूछ बैठते हैं कि दलित संगठन यह नारा क्यों नहीं लगाते? इसकी बजाय वह क्यों ‘जय भीम-जय भारत’ का नारा लगाते हैं? कुछ लोग तो इस अति तक पहुंच जाते हैं कि इस बहाने उनकी राष्ट्रवादी भावना पर प्रश्न उठाने लग जाते हैं, जबकि वास्तविकता यह है कि ‘जय भारत’ या ‘भारत माता की जय’, दोनों का भावार्थ एक ही है। उन्होंने ने कहा कि जब सामाजिक न्याय की ताकतें जब अपने अधिकार की बात करती हैं, तो वह शुद्ध राष्ट्रवाद है। इससे देश की एकता और अखंडता कहीं ज्यादा सुदृढ़ एवं सुरक्षित होती है। आजादी के पहले विदेशी हमलावरों को भारत या उसके कुछ हिस्सों पर विजय प्राप्त करने में ज्यादा कठिनाई नहीं आती थी। इसका सबसे बड़ा कारण यह था कि भारत हजारों- हजार जातियों में बंटा हुआ था, और प्रत्येक जाति की सोच यही थी, या उसे यही सोच दी गई थी कि वह अपने पेशे तक ही सीमित रहे। एक जाति विशेष के लोग चमड़े का काम करें, दूसरी जाति के लोग बाल काटें, कपड़े धोने, सब्जी बेचने और सूअर पालने वाले लोगों की जातियां अलग-अगल थीं। उन्हें यह मानसिकता दे दी गई थी कि वे अपने काम तक सीमित रहें, देश में कोई आए या जाए, उनसे उन्हें क्या मतलब?  एक जाति की ही जिम्मेदारी थी, शासन-प्रशासन और देश की रक्षा करना।


श्री हर्ष देव ने कहा कि देश की रक्षा का जाति विशेष तक ही सीमित रह जाना हार का सबसे बड़ा कारण हुआ करता था। ऐसे हमलावरों को जाति व्यवस्था का फायदा मिलता था, इसलिए वे इसे बनाए रखने की भी पूरी कोशिश करते रहे। इसलिए हम कह सकते हैं कि जातिवाद ने देश को गुलाम बनाया था। जनतंत्र और आरक्षण की वजह से देश के लगभग सभी नागरिकों की कम या ज्यादा भागीदारी शासन-प्रशासन में सुनिश्चित हुई। अब देश की आजादी हम सबका सरोकार है और ऐसे देश को कोई गुलाम बनाने की बात सोच भी नहीं सकता। यह वह ज्योति है, जो भारतीय समाज में भीमराव अंबेडकर जी ने जलाई थी। उनकी विचारधारा ने न सिर्फ भारत को वास्तविक राष्ट्रवाद दिया, बल्कि सम्पूर्ण राष्ट्र के सभी नागरिकों को इस भावना की प्रेरणा प्रदान किया है।

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