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जिंदगी का फलसफा,सुमन भारती की कलम से





कभी रुक गए कभी चल दिए, कभी चलते चलते भटक गए, यूँ ही उम्र सारी गुजार दी, यूँ ही जिंदगी के सितम सहे.. कभी नींद में कभी होश में तू जहाँ मिला।


तुझे देखकर, ना नज़र मिली ना जुवां हिली, यूँ नज़र झुकाकर चल दिए।।


कभी जुल्फ पर कभी तेरे हसीं वजूद पर, जो पसंद थे मेरे किताब, में वो शेर सारे बिखर गये।


मुझे याद है कभी एक थे, मगर आज हम हैं जुदा जुदा, वो जुदा हुए सवर गए, हम जुदा हुए बिखर गये।।


कभी अर्श पर कभी फर्श पर कभी उनके दर कभी दर बदर, गमे आशिकी तेरा शुक्रिया, हम कहाँ कहाँ से गुजर गए🙏



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