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इस्लाम धर्म ने गरिबों के मदद का बेहतर तरीका बताया जकात दो



लेखिका.. मुसर्रत जहां।

जामिया नगर नई दिल्ली।


जकात गरीबों को अमीर बनाने का बेहतर रास्ता है। माल पूंजी पथी वाले अपने माल का मैल निकालते हैं।उसे ही जकात कहते हैं। जकात से गरीबों की मदद हो जाती है।गरीबों की ईद अच्छे तरीके से हो जाती है।आम तौर पर लोग जकात रमजान के महीने मे ही निकालते हैं।गरीबों के लिए रमजान मे निकालना बिल्कुल उचित है।लेकिन मदारिस इस्लामिया के लिए उचित नही होता है।मौलवियों को रमज़ान मे चंदा करना कठिन काम है, रोजा रखकर दुकान दुकान घर घर का चक्कर लगाते हैं। 

मदारिस इस्लामिया के मौलवियों को रमज़ान के इलावा महीनो मे बोलाकर चंदा देने का रिवाज बनाना चाहिए। मैं कुछ ऐसे ट्रस्ट को जानती हूं जो रमजान मे सिर्फ़ गरीबों को चंदा देते हैं। मदारिस इस्लामिया को गैर रमजान मे ही बुलाते हैं। ताकि उनकी नमाज, रोज़े, तरावीह सही से हो जाए। उन ट्रस्ट मे गुलशन ए इब्राहिमी ट्रस्ट जमुई, कबीरिया ट्रस्ट नवादा, बैतूलमाल सुनसहारी ट्रस्ट नवादा, आदि बहुत से ट्रस्टी हैं।जो मदारिस इस्लामिया के मौलवियों का खास ख्याल रखते हैं।


रमजान  इस्लामिक कैलेंडर का नौवां महीना होता है. इस साल रमजान का पवित्र महीना 3 अप्रैल 2022 रविवार  से शुरू हुआ है. रमजान को 'कुरआन का महीना' भी कहा जाता है, क्योंकि इसी महीने  में पैगंबर हज़रत मोहम्मद सल्ललाहो अलैहि वसल्लम के जरिए कुरआन उतारा गया था. रमजान में रोजा-नमाज और कुरआन की तिलावत (कुरआन पढ़ने) के साथ जकात और फितरा (दान या चैरिटी) देने का भी बहुत महत्व है. जकात इस्लाम के 5 स्तंभों में से एक है।


इस्लाम के मुताबिक, जिस मुसलमान के पास   साढ़े सात तोला सोना या साढ़े सावन तोला चांदी या इतनी की संपत्ति हो और उसे अपने ख़र्च करने बाद उस संपत्ति पर एक वर्ष गुजर गया हो तो वह दान करने का पात्र बन जाता है.  रमजान में इस दान को दो रूप में दिया जाता है, फितरा और जकात. आइए जानते हैं फितरा और जकात क्या होता है.


 क्या है जकात (दान)?


इस्लाम में रमजान के पाक महीने में हर हैसियतमंद मुसलमान पर जकात देना जरूरी बताया गया है. आमदनी से पूरे साल में जो बचत होती है, उसका 2.5 फीसदी हिस्सा किसी गरीब या जरूरतमंद को दिया जाता है, जिसे जकात कहते हैं. यानी अगर किसी मुसलमान के पास तमाम खर्च करने के बाद 100 रुपये बचते हैं तो उसमें से 2.5 रुपये किसी गरीब को देना जरूरी होता है.


यूं तो जकात पूरे साल में कभी भी दी जा सकती है, लेकिन वित्तीय वर्ष समाप्त होने पर रिटर्न फाइल करने की तरह ज्यादातर लोग रमजान के पूरे महीने में ही जकात निकालते हैं. मुसलमान इस महीने में अपनी पूरे साल की कमाई का आकलन करते हैं और उसमें से 2.5 फीसदी दान करते हैं. असल में ईद से पहले यानी रमजान में जकात अदा करने की परंपरा है. यह जकात खासकर गरीबों, विधवा महिलाओं, अनाथ बच्चों या किसी बीमार व कमजोर व्यक्ति को दी जाती है.


महिलाओं या पुरुषों के पास अगर ज्वैलरी के रूप में भी कोई संपत्ति होती है तो उसकी कीमत के हिसाब से भी जकात दी जाती है. लेकिन जो लोग हैसियतमंद होते हुए भी अल्लाह की रजा में जकात नहीं देते हैं, वो गुनाहगारों में शुमार है.


 किसे देनी होती है जकात।


 परिवार में पांच सदस्य हैं और वो सभी नौकरी या किसी भी जरिए पैसा कमाते हैं तो परिवार के सभी सदस्यों पर जकात देना फर्ज माना जाता है. जैसे, अगर कोई बेटा या बेटी भी नौकरी या कारोबार के जरिए पैसा कमाते हैं तो सिर्फ उनके मां-बाप अपनी कमाई पर जकात देकर नहीं बच सकते हैं, बल्कि कमाने वाले बेटे या बेटी पर भी जकात देना फर्ज होता है.


जकात के बारे में  हज़रत पैगंबर मोहम्मद सल्लालाहू अलैहि वस्सलम ने फरमाया है, 'जो लोग रमजान के महीने में जकात नहीं देते हैं, उनके रोजे और इबादत कुबूल नहीं होती है, बल्कि धरती और जन्नत (Heaven) के बीच में ही रूक जाती है.'


 क्या है फितरा?


फितरा वो रकम होती है जो खाते-पीते, साधन संपन्न घरानों के लोग आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को देते हैं. ईद की नमाज से पहले  अपनी और अपने नाबालिग बच्चों की ओर से इसका अदा करना जरूरी होता है।  इस तरह अमीर के साथ ही गरीब की साधन संपन्न के साथ ईद भी मन जाती है. फितरे की रकम भी गरीबों, बेवाओं व यतीमों और सभी जरूरतमंदों को दी जाती है. इन 

 सबके पीछे सोच यही है कि ईद के दिन कोई खाली हाथ न रहे, क्योंकि यह खुशी का दिन है।


जकात और फितरे में बड़ा फर्क ये है कि जकात देना रोजे रखने और नमाज पढ़ने जैसा ही फ़र्ज़  है, जबकि  फितरा देना वाजिब है।  जकात में 2.5 फीसदी देना तय होता है जबकि फितरा वर्तमान में अगर गेहूं की कीमत  देना चाहें तो 2.45 ग्राम के हिसाब से उसकी क़ीमत 50 रुपया अदा करें।

और खुजुर की किमत से 1050 रुपया एक आदमी का निकालें।


 जकात व फितरा  'अल्लाह तआला ने ईद का त्योहार गरीब और अमीर सभी के लिए बनाया है. गरीबी की वजह से लोगों की खुशी में कमी ना आए इसलिए अल्लाह तआला ने हर दौलतमंद मुसलमान पर जकात निकालना फ़र्ज़ और फितरा देना वाजिब किया है।

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