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रोज़े के सम्बन्ध में अल्लाह तआला का क़ानून समस्त इबादतों से अलग क्योंकि समस्त इबादतों का सवाब...



रोज़े के सम्बन्ध में अल्लाह तआला का क़ानून समस्त इबादतों से अलग क्योंकि समस्त इबादतों का सवाब फरिश्तों के द्वारा 10 से 700 गुना तक दिलवाया जायेगा।

कानपुर डेस्क :- रोज़े के सम्बन्ध में अल्लाह तआला का क़ानून समस्त इबादतों से अलग क्योंकि समस्त इबादतों का सवाब फरिश्तों के द्वारा 10 से 700 गुना तक दिलवाया जायेगा। लेकिन रोज़ा ही एक ऐसी इबादत है जिसके बारे में अल्लाह का इरशाद है कि ‘‘ रोज़े का बदला में खुद देता हूं, फरिश्तों का वास्ता नहीं होगा। इन विचारों को व्यक्त करते हुए मुहकमा ए शरिया व दारुल क़ज़ा कानपुर के क़ाज़ी ए शरीअत मौलाना मुहम्मद इनामुल्लाह क़ासमी ने करते हुए कहा कि रोज़ेदारों के लिये इससे ज़्यादा खुशी की बात और क्या हो सकती है कि वह अपनी इबादातों का बदला अपने मालिक और रब के मुबारक हाथों से पायेंगे, किसी ग़ैर का इसमें दखल तक ना होगा।

मौलाना ने कहा कि रोज़े से अख्लाक़(नैतिकता) और रूहानियत की कुव्वतें(शक्तियां) पैदा होती हैं, दिल व दिमाग़ रौशन हो जाते हैं, भूख व प्यास की तकलीफ गुनाहों का कफ्फारा हो जाती हैं और इंसान ज़ब्ते नफ्स (इंद्रियों पर का़बू) के ऐतबार से पूरा इंसान बन जाता है। रोज़े से मिज़ाज में विनम्रता आ जाती है। भूख की मुसीबत और तकलीफ का अंदाज़ा होता है और इस वजह से दूसरे लोगों की तकलीफ और मुसीबत का अंदाज़ा करके मदद करने का जज़्बा पैदा होता है।

उन्होंने बताया कि रोज़ेदार हर वक़्त अल्लाह की इबादत में शामिल होता है, क्योंकि जब रोज़ेदार को भूख लगती है, उसका नफ्स(इंद्रिया) खाने व पीने का तक़ाज़ करता है तो उसका दिल बराबर शाम तक यही कहता है नहीं अभी अल्लाह की तरफ से इजाज़त नहीं है। उसका दिल हिम्मत के साथ अल्लाह की तरफ आकर्षित रहता है और दिल का अल्लाह की तरफ आकर्षित होना यही सब इबादतों की जान है।

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