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पलभर की ख़ुशी पलभर को आती है- By ज़रीन सिद्दीक़ी

 


"""नज़म"""

 पलभर की ख़ुशी पलभर को आती है।

आते  आते  ज़रा  देर  से आती है।

गुमसुम लब पे एक तबस्सुम सी।

दस्तक दे दे कर यूॅ चली जाती है।


पलभर की ख़ुशी पलभर को आती है

जाते जाते हरपल वो रुलाती है।


पेड़ों  की शाखो़  पे जब  बहारें आती हैं।

भौरौं के मन में एक हलचल सी होती हैं।

फूलों के गले लगकर आराम यूं पा लेना।

पतझड़ के मौसम मे बस वीरानी होती है।


पलभर की ख़ुशी पलभर को आती है।

जाते जाते बस खा़र देखती है।


पूछो न कोई हमसे जब रात ये आती है।

आंखों  से लहू बनके रुख़सार पे आती है।

चुभते  है जो दिल में बस कांटों के जैसे।

उस दर्द के साए  मे हर  रोज़ गुज़रती है।


पलभर की ख़ुशी पलभर को आती है।

जाते जाते तेरी याद सताती है।


एक उम्र यही सोचा तुमको है भुला देना।

हर रोज़ किया हमने और याद जगा लेना।

जाते जा  भी तुमने खुशियों को लूटा है।

ख़ुद से जो किए वादे ख़ुद से ही मिटा देना।


पलभर की ख़ुशी पलभर को आती है।

जाते जाते सबकुछ वो मिटाती है।

                                                        【लेखिका- ज़रीन सिद्दीक़ी, पटना लेखिका-(बिहार)】

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