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अन्तरराष्ट्रीय शिक्षक दिवस पर याद की गयी भारत की पहली महिला शिक्षक सावित्री बाई फुले




रामगढ़, बलिया 5 अक्तूबर। अंतरराष्ट्रीय शिक्षक दिवस पर दुनियाभर में लोग अपने शिक्षकों को याद कर रहते हैं। इस मौके पर बात करते हैं उस महिला के बारे में, जिन्हें देश की पहली महिला शिक्षक के रूप में जाना जाता है। जो आज भी एक मिसाल बनकर लोगों के दिलों में जिंदा हैं। जिनका नाम सामने आते ही सर फक्र से ऊंचा उठ जाता है। उनका नाम है सावित्री बाई फुले।

शिक्षा में अतुलनीय योगदान के लिए देश और समाज सावित्री बाई फुले का सदैव ऋणी रहेगा। जिस समय फुले ने शिक्षा की ज्योत जलाई, उस समय लड़कियों को शिक्षा से वंचित रखा जाता था, इसके बावजूद भी उन्होंने नारी शिक्षा का बीड़ा उठाया और उसे अंजाम तक पहुंचाया। जिसके बाद समाज से कुंठित वर्ग की महिलाएं भी शिक्षा ग्रहण करने के लिए आगे आने लगीं। बात 19वीं सदी की है, जब स्त्रियों के अधिकारों, अशिक्षा, छुआछूत, सतीप्रथा, बाल विवाह जैसी कुरीतियों पर किसी भी महिला की आवाज नहीं उठती थी। पर सावित्री बाई फुले ने उस वक्त अपनी आवाज उठाई और नामुमकिन को मुमकिन करके दिखाया।  
*कौन थीं सावित्रीबाई फूले-*
3जनवरी 1831 में महाराष्ट्र के सतारा जिले में स्थित नायगांव नामक छोटे से गांव में सावित्रीबाई फुले का जन्म हुआ था। उनकी शादी 9 साल की उम्र में ही ज्योतिबा फुले के साथ हो गई थी। बता दें कि जब उनका विवाह हुआ तब वह अनपढ़ थी। उनके पति तीसरी कक्षा तक पढ़े थे।भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ट कार्यकर्ता बलिहार निवासी अध्यापक सहदेव मिश्र ने सावित्री बाईफुले की नारी जगत के उत्थान एवं नारी शिक्षा की प्रेरणास्रोत अतुलनीय कार्यों को याद करते हुए अपनी कविताओं के माध्यम से व्यक्त किया एवं नारी को शशक्त होने की प्रेरणा दी ।

कैसी विधि ने बनायी व्यवस्था यहाँ। 
हर कदम पर चुनौती तुम्हे है यहाँ।।
जब से पहला कदम तुमने रखा यहाँ।
काँप जाती धरा रुक जाता पवन।।
ऐ जहाँ की जननी लक्ष्मी शारदा है तू,
तू कब तक सहेगी उपेक्षा यहाँ।।
पूजा तेरी जहाँ देव रहते वहाँ,
वेद मन्त्रों ने दीक्षा यह हमको दिया।
सीता मईया ने अग्नी परीक्षा दिया।
द्रौपती का हरण चीर यहाँ ही हुआ।
रोज अपमान तेरा होता है यहाँ।। 
अर्थियाँ रोज पहले निकल जाती है।
तोड़ दो तुम कंगन अब उठाओ कलम।
इस धरा से विसमता मिटाओ अभी ।।


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