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अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर प्रणव मणि त्रिपाठी"अटल' की कलम से विशेष...


                          



     सृष्टि की कुशल संचालिका-नारी.....
   
 जो जन्म लेते ही त्याग का पाठ पढ़ना शुरू कर देती है, पैरों की उंगली से लेकर सिर के ऊपर तक जंज़ीरों में बधी "स्त्री" जाति को शब्दों में बाँधना आसान नही है। ये जन्मदात्री हैं,ये पालन करती हैं।

 स्त्री ईश्वर की सबसे उम्दा कला है, स्त्री अगर स्वयं को मात्र पहचान ले तो वो सर्वस्व विश्व को झुकाने में सक्षम एक शक्ति है।
प्रेम का अगर वास्तविक अर्थ कोई समझा है और प्रेम शब्द को किसी ने अगर परिपूर्ण रूप दिया है तो वो सिर्फ स्त्री ही हैं। क्योंकि निश्छल भाव से सदा ही स्वयं को औरों के लिए समर्पित कर देना शायद किसी पुरुष के वश का कार्य नही है। बेटी, बहन , पत्नी फिर माँ ,न जाने कितने रूप हैं किंतु उद्देश्य सिर्फ प्रेमदान और समर्पण ही हमेसा रहता है।

 जब माँ बनती है तो अपना सुध-बुध खोकर हमें अपने ममता से अभिसिंचित करती है, बहन रूप में भातृ प्रेम को सर्वोपरी रखती है, जब नारी,पत्नी बनती है तो उसी छण पति को देवता मानकर अपना सर्वस्व न्योछावर कर देती है, जब बेटी बन कर जन्म लेती है तो सम्पूर्ण विश्व का सौभाग्य अपने पिता के झोली में डाल देती है। सदैव स्वयं को त्याग की बलि चढ़ाकर मौत की गोद में जाकर ज़िंदगी को जन्म देने वाली इस स्त्री जाति को मैं समस्त पुरुष वर्ग की तरफ से सादर प्रणाम करता हूँ। संस्कृत में कहा गया है कि “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः” अर्थात जहाँ  स्त्री का सम्मान होता है वहाँ सुख समृद्धि के द्वार अनायास ही खुल जाते हैं। 

मैने तमाम लोगों से सुना है एक शब्द-
अबला नारी ,कौन इस बात को स्वीकार करता है कि नारी अबला होती है ? भूल गए वो बात जब नवाब वाज़िद अली शाह ने रणभूमि में अंग्रेजों के सामने घुटने टेक दिए तो उनकी पत्नी जिनकी सौर्यता का गुणगान पूरा राष्ट्र करता है "बेगम हजरत महल" ने अंग्रेजों से लोहा लेने का अदम्य साहस किया, क्या भूल गए झांसी की रानी को या इस युग की सुनीता विलियम्स, सुषमा स्वराज, निर्मला सीतारमण या मैरी कॉम क्यों भूल रहे हो आप इनको कि ये नारी एक ईश्वरीय शक्ति है । ना ये अबला थी ना ये अबला है , अबला हमारी सोच है स्त्री नही । स्त्री के अनेक रूपों को देख के ही हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि
":एकैव शक्ति: परमेश्वरस्य,विविधा वदन्ति व्यवहार काले,भोगे भवानी पुरुषेषु लक्ष्मी:,कोपे तु दुर्गा प्रलये तु काली"  स्त्री के अनेक रूपों से परिचित कराता है ये श्लोक।


                 🙏धन्यवाद🙏
       ✍️प्रणव मणि त्रिपाठी "अटल"
         महावीर धाम सोसाइटी बलियां





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