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अखण्ड भारत की प्रतिज्ञा




परमेश्वर की रचनाओं में
एक रचना सबसे प्यारी है
वह भूमिखंड भारत है बस
जिसकी हर छटा निराली है।

गंगा यमुना पग चूमती हैं,
रक्षक बन खड़ा हिमालय है,
अद्भुत अखंडता बृहद सभ्यता
हर शाम यहां दिवाली है।

हर व्यक्ति विश्व का ललचाता
इस देश में जीने मरने को
और हमको ये सौभाग्य मिला
क्या धर्म जाति में लड़ने को?

गीता-कुरान, रहिमन कबीर
इन सबने क्या दिखलाया था,
आपस में मिलजुल प्यार करो
यह धर्म सदा सिखलाया था।

लेकिन बस झूठी शान में हम
दिन रात ही उलझे रहते हैं,
बन नेता तोड़ रहे वो देश,
हम हिन्दू-मुस्लिम करते हैं।

अपने स्वदेश का संविधान
इसकी संस्कृति अद्भुत महान
ये अखंडता का नायक है,
यह विविध धर्म परिचायक है।

आओ!अब भी जग जाएं हम
बन एक इन्हें दिखलायें हम,
एक दूजे से जुड़कर हम सब
एक दूजे के हो जाएं हम।

बस एक धर्म ही मन में हो
हम क्यों अलगाव में व्यर्थ रहें,
हम भारत में जन्में हैं तो
"भारतवासी" सर्वत्र रहें।
                        
                      ✍️प्रणव मणि त्रिपाठी
                     महावीर धाम सोसाइटी रसड़ा





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