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अनोखी दास्तां:-✍️सुमन भारती


जंग उसके हार जाने का बस इतना था सबब,

सब-कुछ था उसके पास मगर हौसला ना था...


औरों में ऐब हमको नज़र आते थे बहुत

जबतक हमारे घर में कोई आईना ना था...


ये दोस्त ! तुम उसके गुफ्तगू से हो नाराज़ किस लिए,

कड़वी जुबान का था मगर दिल का बुरा ना था...


ये जिंदगी हमारी थी, खुद से भी अजनबी*,

क्यूंकि हम जी तो रहे थे,मगर जीने में मज़ा ना था*...


 खुश आज़ हम है तो दुनियां करीब है,

बस कल तक हमारा हाल कोई पूछता ना था ....


उससे फरेब खाकर भी उससे गिला ना था

मजबूर था वो शख्स मगर वतनपरस्त ना था...


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