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धर्म के नाम पर भेदभाव क्यों- आरिफ़ा मसूद अंबर



बिहार

हर बार सोचते हैं यह हमारा आखरी लेख है अब नहीं लिखेंगे ।क्योंकि ना हम पत्रकार हैं और ना ही राजनीति से कोई रुचि۔ हमें तो केवल साहित्य की साधना करनी है, साहित्य साधना ही हमारा कर्तव्य है। परंतु सुना है साहित्य समाज का दर्पण होता है ।

 फिर यदि समाज में लाखों  लोगों की भावनाएं हर रोज़ आहत  होती रहेंगी,और समाज में सम्मानित समझे  जाने वाले  मुल्ला और महन्त धर्म के नाम पर समाज को बांटने की कोशिश करेंगे , इस देश की गंगा जमुनी तहजीब , भाईचारे,  धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र को अपने ज़हरीले बयानों से हवन कुंड में स्वाहा करने की कोशिश करेंगे ,तो फिर किस प्रकार एक साहित्यकार का संवेदनशील मन इससे अछूता रहेगा , और क्यों ना एक लेखिका अपने शब्दों के माध्यम से अपने  अन्तर्मन  में उठने वाले ज्वार भाटा को कागज़ और क़लम के हवाले करेगी।

 पिछले काफी दिनों से डासना में एक मंदिर में पानी पीने गए लड़के को बुरी तरह पीटने की खबरें आ रही थी । इस मंदिर के महंत स्वामी नरसिंहानंद ने न सिर्फ इस पिटाई का समर्थन किया बल्कि आरोपियों के समर्थन में दिलों जान से जुट गए ,बालक का दोष केवल इतना था कि वह मंदिर परिसर में पानी पीने चला गया था‌।

 जब कि शिव मंदिर के बाहर बड़े बड़े अक्षरों में लिखा है यहां मुसलमानों का प्रवेश वर्जित है। आह! क्या हुआ इस देश की मानवता को? क्या भगवान का घर किसी एक धर्म के लिए होता है ? या पानी का कोई धर्म होता है?  अगर हां  तो सबका मालिक एक है ‌क्यों कहा जाता है? भारत विभिन्न धर्मों का समूह है यह ऐसा गुलदस्ता है जिसमें हर रंग के फूल हैं,  यह विभिनता ही इसकी सुंदरता का प्रतीक है । 

यहां हर मजहब हर धर्म के लोग एकता और भाईचारे से रहते हैं ,सब एक-दूसरे के पूजा स्थलों पर जाते हैं,  सब एक दूसरे की इबादत गाहों पर पहुंचते हैं।  क्या कभी किसी सूफी संत की दरगाह पर लिखा देखा है केवल मुसलमान आएं  बल्कि वहां सभी धर्मों के लोग जाकर माथा देखते हैं ।

फिर  मंदिर भी तो भगवान का घर है यहां  मुसलमानों का प्रवेश क्यों वर्जित है?  बात केवल यहीं नहीं थमी महर्षिदान्द  सरस्वती इस देश की शांति और सामाजस्य को‌ स्वाहा करके ईर्ष्या द्वेश  और क्रोध के माध्यम से इस समाज को बांटने और देश की शांति व्यवस्था को स्वाहा कर देना चाहते हैं । 

वह एक वर्ग विशेष से नफ़रत की आग में  जल रहे हैं । इस्लाम एक ऐसा मज़हब है जो केवल शांति और व्यवस्था का पाठ पढ़ाता है एकता और भाईचारे में विश्वास रखता है ,  न केवल अपने बल्कि दूसरे के धर्मों का भी सम्मान करना सिखाता है। लेकिन महर्षिदान्द  के नफ़रत की सीमा यहां तक पहुंच गई कि उन्होंने  इस धर्म के पैगंबर सरवरे कायनात सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम  के विषय में अपशब्द कहे। जो महन्त अपने धर्म के बारे में नहीं जानता वह दूसरे के धर्म को क्या समझेगा यह महन्त केवल समाज  को नफ़रत की सामग्री परोस कर वर्गों में विभाजित करना चाहते हैं । 

इस देश के सामाजिक वातावरण में ज़हर घोलकर इसे दूषित कर देना चाहते हैं ।अपने आप को प्रकाश में लाने और सस्ती शोहरत हासिल करने की इससे घटिया हरकत हो ही नहीं सकती।  

नफ़रत और द्वेष की हद यह हो गई कि जनता के राष्ट्रपति कहलाए जाने वाले प्रेम सद्भाव और मानव मूल्यों को संरक्षित करने वाले महात्मा ऐ० पी०जे० कलाम साहब तक को  जिहादी कह डाला जिसे अपने धर्म का ज्ञान नहीं वह जिहाद के अर्थ को क्या समझेगा दुनिया में ऐसा कौन सा धर्म है जो इंसान को इंसान से नफ़रत करना सिखाता है प्रेम सदभाव और भाईचारे की जगह ईष्र्या और कलह का पाठ पढ़ाता है । इस प्रकार तो यह हिंदू धर्म को भी बदनाम कर रहे हैं  जिसे धर्म का ज्ञान नहीं उससे भला यह कैसे आशा की जा सकती है कि उसे देश का ज्ञान होगा ।

डी०आर०पी०यू एयरोस्पेस इंजीनियर, प्रक्षेपण यान और बैलिस्टिक मिसाइल प्रौद्योगिकी के विकास पर कार्य करने वाले वैज्ञानिक ए०पी०जे कलाम की क्या जानकारी होगी ,महंत जी ने  कलाम साहब  की पुस्तकों का अध्ययन किया होता तो उन्हें यह जानकारी होती कि  कलाम साहब को भारत सरकार ने मिसाइल मैन ऑफ इंडिया की उपाधि से क्यों सम्मानित किया था।

 वर्ष 1974 में परमाणु परीक्षण के बाद वर्ष 1998 में भारत में किए गए पोखरण द्वितीय परमाणु परीक्षण ने उनकी भूमिका को महत्वपूर्ण, राजनीतिक ,संगठनात्मक और तकनीकी रूप में उजागर किया । डॉ कलाम ने इंदौर, अहमदाबाद ,भारतीय प्रबंधन संस्थान में प्रवक्ता के रूप में कार्य किया ।मैसूर  के जे०एस विश्वविद्यालय और चेन्नई के अन्ना  विश्वविद्यालय एयरोस्पेस इंजीनियरिंग के प्रोफेसर के रूप में  कार्य किया। वह भारतीय विज्ञान संस्थान बेंगलुरु के मानक सदस्य और तिरुवंतपुरम की भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी के कुलपति भी रहे हैं । 

अपनी पुस्तक 2020 में कलाम साहब ने 2020 तक देश की पूरी तरह से विकसित करने वाली योजना की संस्तुति की है छात्र संपर्क और प्रेरणा स्रोत उन्हें छात्रों का चहीता राष्ट्रपति बना दिया। भारत के युवाओं को समाज से  what can I give moment मिशन लॉन्च किया जिसे देश में व्याप्त भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए लक्षित किया गया।

 लेकिन यहां हमारा विषय कलाम साहब की उपलब्धियों पर  चर्चा करना नहीं है  अौर शायद यह बातें महन्त जी की समझ में नहीं आएंगी क्योंकि वह केवल नफ़रत की भाषा का ज्ञान रखते हैं एवं अपने कटु वचनों से समाज को‌ वर्गों में विभाजित कर देना चाहते हैं। वह अपने तीखे वचनों से समाज में जहर घोलने का काम कर रहे हैं। 

 आखिर किसने अधिकार दिया महन्त जैसे  लोगों को देश के लाखों लोगों की भावनाओं को आहत करें। मैं राज्य सरकार से अनुरोध करती हूं कि ऐसे लोगों के ख़िलाफ़ सख़्त कार्यवाही की जाए ताकि देश की एकता और अखंडता की सुरक्षा की जा सके।

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